Tuesday, January 22, 2019

DHANI DHARAMDAS



धर्मदास (धनी धर्मदास ; १४३३ - १५४३ अनुमानित) कबीर के परम शिष्य और उनके समकालीन सन्त एवं हिन्दी कवि थे। धनी धर्मदास को छत्तीसगढ़ी के आदि कवि का दर्जा प्राप्त है। कबीर के बाद धर्मदास कबीरपंथ के सबसे बड़े उन्नायक थे।भक्त धर्मदास जी का जन्म सन् 1405 (वि.सं. 1462) में मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ नगर में हिन्दू धर्म तथा वैश्य कुल में हुआ था। वह कबीर जी के समकालीन थे। कलयुग में जब कबीर जी संवत् 1455 (सन् 1398) से संवत् 1575 (सन् 1518) तक लीला करने के लिए काशी में प्रकट हुए। भक्त धर्मदास जी बहुत बड़े साहुकार थे। धर्मदास जी के विषय में ऐसा कहा जाता है कि वह इतने धनी थे कि जब कभी बांधवगढ के नवाब पर प्राकृतिक आपदा (जैसे अकाल गिरना, बाढ़ आना) आती थी तो वे धर्मदास जी के पूर्वजों से वित्तिय सहायता प्राप्त करते थे। । धर्मदास जी का जन्म हिन्दू धर्म में होने के कारण वह लोक वेद के आधार से प्रचलित धार्मिक पूजांए अत्यंत श्रद्धा व निष्ठा से किया करता थे। उन्होंने श्री रूपदास जी वैष्णों सन्त से दिक्षा ले रखी थी। संत रूपदास जी ने धर्मदास जी को श्री राम व श्री कृष्ण नाम का जाप भगवान शंकर जी की भी पूजा ओम् नमोः शिवाय्, एकादशी का व्रत आदि आदि क्रियाए करने को कह रखा था। वह नित्य ही गीता जी का पाठ करते तथा श्री विष्णु जी को ईष्ट रूप में मानकर पूजा करते थे। श्री रूपदास जी ने धर्मदास जी को अड़सठ तीर्थों की यात्रा करना भी अत्यंत लाभप्रद बता रखा था। जिस कारण भक्त धर्मदास जी अपने पूज्य गुरुदेव संत रूपदास जी की आज्ञा लेकर अड़सठ तीर्थों के भ्रमण के लिए निकल पढे। भक्त धरमदास (धर्मदास) जी को कबीर के शिष्यों में सर्वप्रमुख माना जाता है। इनकी पत्नी का नाम अमीनी था और इनके नारायणदास एवं चूड़ामणि नामक दो पुत्र भी थे जिनमें से प्रथम कबीर साहेब जी के प्रति विरोधभाव रखता था।




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